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शुक्रवार, 31 दिसंबर 2010
रविवार, 26 दिसंबर 2010
फराह मार खान
इस प्रश्न का जवाब ???
इतनी मार खाने के बाद फराह मार खान अगली फिल्म ज़ल्दी कैसे बना सकती हैं।
शुक्रवार, 24 दिसंबर 2010
शनिवार, 18 दिसंबर 2010
शुक्रवार, 17 दिसंबर 2010
गुरुवार, 16 दिसंबर 2010
शनिवार, 11 दिसंबर 2010
शुक्रवार, 26 नवंबर 2010
मेरा समुद्र मंथन
यादों के समंदर में ।
मैं उतरता जाता हूँ
गहरा और गहरा
समंदर के अन्दर
...और अन्दर
जहाँ मुझे मिलते हैं
एक से बढ़ कर एक
बेशकीमती मोती
किये गए भले बुरे कामों के
उनसे मिले सबक के।
वही तो बताते हैं कि
मैंने क्या गलत किया
अब उन्हें सुधार कर
क्या अच्छा कर सकता हूँ।
इस समुद्र मंथन के बाद
जब मैं बाहर आता हूँ
तब खुद को
पहले से ज्यादा
मालामाल महसूस करता हूँ।
इसीलिए मुझे
डूब जाना पसंद है
यादों के समंदर की गहरायी में ।
तो भिडिये
तो फिर भिडिये।
यदि भिड़ेंगे नहीं,
तो सामने वाले की
ताक़त कैसे जानेंगे?
क्यों किया जाये समझौता,
कैसे समझेंगे ?
क्योंकि,
समझौता तो ताक़तवर से किया जाता है,
जिसे हराया नहीं जा सकता,
जिसे दबाया नहीं जा सकता।
कमजोर तो,
मारने के लिए है,
जीतने के लिए है।
गुरुवार, 25 नवंबर 2010
जब जुड़ना ही है तो.....ब्रेक के बाद क्यूँ?

रविवार, 14 नवंबर 2010
विश्व में सबका प्यारा हैरी पॉटर

शनिवार, 13 नवंबर 2010
मंगलवार, 9 नवंबर 2010
आदमी के सर वाला कुत्ता
कुत्ता बनने का शौक़ चर्राया ।
मैं दोनों हाथ और दोनों पैरों के बल
खड़ा हो गया।
फिर मुंह उठा कर
लगा जोर जोर से भौंकने।
सामने से गुज़रते लोग
कुछ ज्यादा ही डर गए,
एक आम कुत्ते के भौंकने से उपजे डर से ज्यादा
डर था ऊनके चेहरों पर।
क्यूंकि,
यह कुत्ता
कुछ ज्यादा अजीब था,
आदमी से सर वाला
कुत्ते सी आवाज़ वाला !!
पता नहीं कितना खतरनाक हो !!!
हालाँकि भौंकने वाले कुत्ते काटते नहीं,
यह सुना था,
पर आदमी सी शक्ल वाला कुत्ता
कभी देखा नहीं था।
पता नहीं यह कवाहट उसके ऊपर बनी थी या नहीं।
इसलिए सभी का ज्यादा भयभीत होना स्वाभाविक था,
लोगों का भय देख कर
मुझे बहुत मज़ा आया।
उनका आतंक मुझे गदगद कर दिया
उसके बाद से आज तक
मैं -
आदमी सी शक्ल वाला कुत्ता बन
अपने चारों हाथ और पैरों पर खड़ा होकर
भौंकता चला आ रहा हूँ।
सोमवार, 25 अक्टूबर 2010
भ्रष्ट भी, और अब आलसी भी
मंगलवार, 19 अक्टूबर 2010
ऑफिस में मेरा अंतिम दिन
रविवार, 27 जून 2010
कुछ यह भी
ढूँढने से जग में खुदा मिल जाता है यारो,
जो मिलता नहीं वह खुदा नहीं होता ।
आसमान में जितने तारे, तम्मनाये उतनी पालो,
छूने को आसमान हो तो तम्मनाओं की क्या बिसात?
जब पैदा हुआ मैं रो रहा था लोग हंस रहे थे,
आज मैं मर गया हूँ, तो लोग रो रहे हैं।
लोगों को समझना इतना आसान नहीं यारो,
मेरे लिए अजनबी हैं, उनके हरूफ।
रविवार, 20 जून 2010
फादर्स डे

बुधवार, 16 जून 2010
दुःख का निवारण : पूजा पाठ
बकवास
मुझे राम से काम नहीं, रावण से काम चल जायेगा।
सिक्का खोटा ही सही, अंधे बाज़ार में चल जायेगा।
दुनिया को लाख समझाओ, समझेगी नहीं,
भरे बाज़ार में रोता ही रह जायेगा।
जानते हो कि दुनिया चार दिन की है,
पर सामान सौ बरस का जोड़ते हो,
बिजली से श्मशान में जलोगे,
पर कोठी आलीशान जोड़ते हो।
अरे,किसी पराये को अपना बनाओ,
रिश्ते सब अपने ही तोड़ते हैं।
मंगलवार, 15 जून 2010
टिप्पणियां
मुझे ऐसी बीवी मिली जिसके चाँद से चहरे पर चेचक के दाग थे।
मै तो चला जिधर मिले रास्ता
पीने के बाद मेरे साथ अक्सर ऐसा हो जाता है।
पहला पहला प्यार है, पहली पहली बार है
हर खूबसूरत लड़की से यही कहा जाता है।
यादे न जाए बीते दिनों की
महीने की पहली तरीख के बाद ऐसा ही होता है।
सोमवार, 14 जून 2010
आदमी
एक आदमी
ऊँचाई से गिरा
और मर गया ।
इससे पहले
वही आदमी
'खुद' से गिरा था
पर
बेशर्मी से
हँसता रहा था।
अरे भैया,
ऊँचाई का फर्क
आदमी ही जानता है।
शनिवार, 12 जून 2010
बिना भाव का रावण

गुरुवार, 10 जून 2010
एक सेकंड जो ज़िन्दगी बदल दे

बुधवार, 9 जून 2010
क्यूंकि
मेरे पास एक घर है, एक छत है,
फिर भी मैं दुखी हूँ,
क्यूंकि मेरे पड़ोसी की छत चूती नहीं।
मेरे पास दो जोड़ कपडे हैं,
फिर भी मैं दुखी हूँ,
कि मेरे पडोसी के कपडे मुझसे चमकदार कैसे।
मैं और मेरा परिवार दो वक़्त की रोटी खा लेता है,
फिर भी मैं दुखी हूँ,
कि सामने की झोपडी के ग़रीब
भूखे भी कैसे हंस लेते हैं।
मैं दुनिया का सबसे दुखी व्यक्ति हूँ
क्यूंकि,
मेरे आस पास के लोग खुश हैं।
रविवार, 6 जून 2010
दोस्त और दुश्मन
मुझे शिक़वा है उन दोस्तों से
जो पीछे से वार करते हैं,
उनसे अच्छे वह दुश्मन
जो सामने नज़र आते हैं।
जीना और मरना
मैं जिया कुछ इस तरह
कि मरने वाला शर्मसार था।
मैं मरा कुछ इस तरह
कि जीने वाला जार जार था।
जीने और मरने में
फर्क इतना है यारों,
कोई जीने के लिए जीता है,
तो कोई मर कर भी जीता है।
इत्मीनान
मैं दिन भर सोचता रहा-
क्या करुँ, क्या न करुँ।
यह करुँ, यह न करुँ।
इसी उधेड़बुन में
पूरा दिन बीत गया।
रात आयी
और मैं
चादर तान कर सो गया।
शनिवार, 5 जून 2010
शुक्रवार, 4 जून 2010
बूँद
एक बूँद को,
आसमान से गिरते हुए।
बूँद ज़मीन पर गिरी
और धूल में मिल गयी
दोस्त बोला-
आह ! धूल में मिल गयी।
मैंने उसे रोका
और कहा-
ज़रा देखो
बेशक,
धूल मिटटी में मिल गयी है,
पर उसके मिटने का निशाँ बाकी है।
धूल नम हो गयी है,
बूँद की यही खासियत
धूल को जीवनदायी बना देगी
ज़रुरत एक बीज की है
बूँद को धूल में मिलाने वाली
कल एक पौंधे को जन्म देगी।
गुरुवार, 3 जून 2010
बस की पांच कवितायेँ.
अँधेरे की कोई उम्र नहीं होती,
बस,
उजाले की एक किरण चाहिए।
(२)
मुझे हाथ बढाने में
कोई ऐतराज़ नहीं
बस, एक हाथ
आगे बढ़ना चाहिए ।
(३)
मेरा ज़ीने का अंदाज़ निराला है,
बस,
मैं थोडा बेफिक्र हूँ।
(४)
वह बड़ी देर तक
मेरे सामने खड़ा रहा
बस, मैं था कि
आसमान के खुदा को देखता रहा।
(५)
मैं बस में चढ़ा
वह बस में चढ़ी,
बस आगे बढ़ी,
उन्हें झटका लगा।
वह मुझ पर गिरी,
मैंने उनको संभाला।
बस आगे बढ़ी,
बात आगे बढीk,
इतना बढी कि
गली मोहल्ले तक बढ़ी,
मैंनेh कहा बस।
हम दोनों ने शादी की
हनीमून मनाया बस पर चढ़ कर।
अब सब कुछ बस है।
मैं जैसे ही कुछ बोलता हूँ,
वह कहती हैं-
बस ।