शनिवार, 12 जून 2010

बिना भाव का रावण


यह महज़ इत्तेफाक हो सकता है कि अपने कैर्रिएर के दस साल पूरे होने के ठीक दस दिन पहले अभिषेक बच्चन की फिल्म रावण रिलीज़ होने जा रही है । अभिषेक बच्चन की पहली फिल्म रिफ्यूजी ३० जून २००० को रिलीज़ हुई थी। रावण उनकी ४२ वीं फिल्म है। पर दस साल में ४२ फ़िल्में अभिषेक बच्चन के बॉक्स ऑफिस पर बिकाऊ सितारा होने का प्रमाण नहीं। उनके खाते में डेल्ही ६, द्रोण, सरकार राज, झूम बराबर झूम, उमराव जान, कभी अलविदा ना कहना, नाच, रक्त, रन, मुंबई से आया मेरा दोस्त, मैं प्रेम की दीवानी हूँ, ॐ जय जगदीश, शरारत, बस इतना सा ख्वाब है, ढाई अक्षर प्रेम के, तेरा जादू चल गया, रेफूजी, आदि सुपर फलों फ़िल्में दर्ज हैं। इनमे ज्यादातर बड़े बजट की फ़िल्में थीं। इतनी फ्लॉप फ़िल्में देने के बाद क्या कोई अभिनेता दस साल तक अपनी गाड़ी खींच सकता है? हाँ, यदि उसका पिता भी अमिताभ बच्चन हो। सच कहा जाए तो अभिषेक अपने पिता का बोया हुआ ही काट रहे हैं। गुरु और युवा जैसी फिल्मों के अलावा अपनी अन्य तमाम फिल्मों में अभिषेक बच्चन अभिनय के लिहाज़ से नाकाम साबित हुए हैं। उन्हें डांस करना बिलकुकल नहीं आता। रोमांस के नाम पर जीरो हैं। रील लाइफ प्रेमिका के सामने भी टफ बने खड़े रहते हैं । ऐसा लगता है जैसे किसी पहलवान से पंजा लड़ने जा रहे हों । संवाद अदायगी में वह कमज़ोर हैं। उनका चेहरा भावहीन बना रहता है। मणिरत्नम जैसे डिरेक्टर उनसे अभिनय करा सकते हैं। पर उनसे अभिनय करा पाना हर किसी के दम का बूता नहीं। इसके बावजूद उनके पास फ़िल्में हैं, तो यही कहा जा सकता है कि उन्हें अपने पिता के सुपर स्टार से बने रसूख का फायदा मिल रहा है। अन्यथा दसियों फ्लॉप फिल्मों के हीरो को कौन अपनी फिल्म का हीरो बनाना चाहेगा ? आइये चलें रावण को देख लेते हैं।

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