शनिवार, 22 मई 2010

कैसे उडेंगी ऐसी काइट्स

काइट्स का बहुत दिनों से इंतज़ार था। ख़ास तौर पर इसलिए कि हृथिक रोशन की दो साल बाद कोई फिल्म रिलीज़ हो रही थी। बारबरा मोरी की काठी सेक्स अपील का ढिंढोरा भी फिल्म की ओर आकृष्ट कर रहा था। फिल्म कोई दो घंटा चार मिनट की है। इतनी कम लम्बाई की फ़िल्में कभी बोर नहीं करती। इन्हें देखते हुए थ्रिल का अनुभव होता है। हृथिक रोशन और बारबरा मोरी को देखने का थ्रिल कुछ ज्यादा ही था। लेकिन फिल्म की शुरुआत ही बेहद ठंडी और ढीली थी। अनुराग बासु ने गैंगस्टर जैसी रोमांटिक थ्रिलर फिल्म बनाई है। राकेश रोशन ने भी बढ़िया, थ्रिल और एक्शन से भरपूर फ़िल्में बनायी है। इसलिए यह नहीं कहा जा सकता की अनुभव की कमी थी। उस पर सोने पर सुहागा हृथिक थे। लेकिन यकीन जानिए इतनी ठंडी रोमांस फिल्म पिछले कई दशकों में नहीं देखी होगी। बार्बर मोरी का सोंदर्य ऐसा हैं की कोई खूबसूरत और चालू लड़का उस पर मर मिटे और अरब पति की बेटी को छोड़ दे। अनुराग बासु ऐसी स्क्रिप्ट लिख पाने में असफल रहे जो दिल को एहसास कराये। ह्रितिक - बारबरा जोड़ी के बीच ऐसी कैमिस्ट्री पैदा ही नहीं हो पायी की रोमांस उभर कर आता। नंगा नारी शरीर ही यदि रोमांस पैदा कर पाता तो रोमांस फ़िल्में बनाना बेहद आसान हो जाता । अनुराग बासु ना तो रोमांस के साथ थ्रिल पैदा कर पाए, न ही थ्रिल के साथ रोमांस पैदा कर पाए। वह इस कनफूजन में रहे कि क्या बनाऊं। शायद उन पर भी ह्रितिक रोशन का स्टार हावी हो गया था। पर फिल्म में तो ह्रितिक रोशन तक बेस्वाद और फीके लगे। इतने ढीले और प्रभावहीन ह्रितिक तो पहले कभी नहीं देखे। काश हिंदी फिल्म निर्माता फिल्म लिखने में कुछ ख़ास ध्यान देते। हो सकता है कि कईट्स की असफलता के बाद फिल्म निर्माता कहानी और स्क्रिप्ट की ओर कुछ ज्यादा ध्यान दें।

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