रविवार, 9 अगस्त 2009

ऐसा नहीं है लव आज कल

निर्देशक इम्तियाज़ अली की तारीफ करनी होगी कि उन्होंने दर्शकों को अपनी उलझी कहानी के जाल में उलझा लिया। उनकी फ़िल्म की कहानी बेहद अवास्तविक है। वह जिस आधुनिक प्रेम को दिखा रहे हैं, उसमे आत्मा से अधिक शरीर महत्वपूर्ण है। दीपिका पादुकोण और सैफ अली खान जिस युवा पीढ़ी को रेप्रेजेंट करते, उसे अपने कैरियर से बेहद लगाव है , प्यार व्यार उनके लिए कोई मायने नहीं रखता इसी लिए सैफ ऋषि कपूर की प्रेम कहानी का मजाक udaate रहते हैं कि हीर राँझा और रोमियो जूलियट वाला प्रेम सिर्फ़ किताबों में ही होता है। फ़िर दीपिका अपने जॉब के सिलसिले में इंडिया आती है, सैफ अपने काम में जुट जाते हैं। कुछ समय बाद वह अपनी प्रेमिका के साथ दीपिका से मिलाने जाते हैं। दीपिका भी भारत में अपने एक सहयोगी से प्रेम करने लगती है और उनकी शादी होने वाली है। इस बीच दोनों मिलकर एक दो गीत भी मार देते हैं। तब तक दोनों के बीच प्रेम की शिद्दत नहीं दिखायी पड़ती। बाद में सैफ वापस चले जाते हैं और दीपिका की शादी राहुल खन्ना से हो जाती है। बस शादी होते ही दीपिका को एहसास होता है की वह सैफ से कितना प्यार करती है। अब यह बात दीगर है कि सैफ को ऐसा एहसास उस समय भी नहीं होता। उसे यह एहसास होता है कुछ साल बाद। ऐसा एहसास होते ही वह भारत आता है दीपिका से मिलाने। क्यूँ भाई इम्तियाज़, यह आपने कैसे युवा दिखाए हैं जो ज़रा भी लोजिकल नहीं हैं। शारीरिक संबंधों से आगे सोंचते नहीं। जब सोचते भी हैं तो कमाल का ट्विस्ट पैदा कर देते हैं।

इम्तियाज़ भाई आपने कभी प्यार किया है या नही ? यदि किया है तो आपका प्यार कैसा है? ऋषि कपूर वाला या आधुनिक सैफ वाला? यदि आपने ऋषि वाला प्यार किया है तो आप मानेंगे कि प्यार एक पल की जुदाई सहन नहीं कर सकता। यदि आप किसी से प्यार करते हैं तो उसे एक पल भी नहीं देख पाना गंवारा नहीं कर सकते। फ़िल्म देख कर तो ऐसा लगता है जैसे आपने कोई वाला प्यार नहीं किया। आपने केवल किताबों में प्यार को पढा और कथित आधुनिक प्यार से तुलना कर दी।

एक बात और समझ में नहीं आयी। रिशी कपूर ख़ुद की कहानी याद करते समय ख़ुद में युवा सैफ को देखता है, पर हरलीन में युवा दीपिका को क्यूँ नहीं देखता। क्या सैफ ने कहा था कि केवल वही दोहरी भूमिका करेंगे, दीपिका नहीं। या आपको यह भय था कि दोहरी भूमिका करते करते दीपिका कहीं स्टीरियो टाइप ना हो जाए। यदि आपको ऋषि को युवा देखना चाहते थे तो रणबीर कपूर को ले लेते। पर ऎसी दशा में सैफ रणबीर से मात खा जाते। क्या कोई निर्माता कभी किसी अन्य ऐक्टर से मात खा सकता है? नहीं ना!

बहरहाल, खान अभिनेता बढ़िया प्रचारक साबित हो रहे हैं। अब देखने की बात होगी की सलमान खान अपनी फ़िल्म वांटेड का कैसा बढ़िया प्रचार करते हैं।

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