रविवार, 6 जून 2010

इत्मीनान

मैं दिन भर सोचता रहा-

क्या करुँ, क्या न करुँ।

यह करुँ, यह न करुँ।

इसी उधेड़बुन में

पूरा दिन बीत गया।

रात आयी

और मैं

चादर तान कर सो गया।

3 टिप्‍पणियां:

  1. इससे अच्छा कुछ नहीं हो सकता महाराज !

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  2. ha ha ha ha


    sabse achha kam hi yahi he

    chadar dalo muh par or so jao

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  3. हा हा हा !!!!!!!!!
    बस यही तो मज़े कि बात हैं कि हम सारा दिन टेंशन में रहते हैं कि क्या करे क्या करे
    और रात को सोते वक्त लगता कि क्यों टेंशन ले रहे थे .
    थोड़े शब्दे में आनंद और हास्य जगा देने वाली कविता के लिए बधाई .

    kandpal sir , पहली ही बार आया आपके ब्लॉग पर और बहुत अच्छा लगा
    --
    !! श्री हरि : !!
    बापूजी की कृपा आप पर सदा बनी रहे

    Email:virender.zte@gmail.com
    Blog:saralkumar.blogspot.com

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