
पार्थो घोष की इस शुक्रवार रिलीज़ हो रही फिल्म एक सेकंड जो ज़िन्दगी बदल दे का केवल लेखा जोखा रखने के लिहाज़ से ही महत्व है। ये फिल्म उन पार्थो घोष की फिल्म है, जिन्होंने अग्निसाक्षी, १०० डेज युगपुरुष जैसी फ़िल्में दी हैं। यह फिल्म जैकी श्रोफ और मनीषा कोइराला की उस जोड़ी की फिल्म है जिसने अग्निसाक्षी, १९२०-अ लव स्टोरी, युगपुरुष, लज्जा और ग्रहण जैसी फ़िल्में साथ साथ की हैं। इसके अलावा एक सेकंड जो ज़िन्दगी बदल दे का अन्य कोई महत्त्व नहीं। अब मनीषा-जैकी जोड़ी में अग्निसाक्षी और युगपुरुष वाली बात नहीं । दर्शकों के दिलो दिमाग में मनीषा का मासूम, नेपाली सौन्दर्य कोई एहसास पैदा नहीं करता। जैकी अब दर्शकों के पसंदीदा जग्गू दादा नहीं रहे। पार्थो घोष के निर्देशन में भी अग्निसाक्षी और १०० डेज वाली बात नहीं रही। अब यह तीनों अलग अलग या एक साथ भी दर्शकों को आकर्षित नहीं कर पाते। अलबत्ता, यदि मनीषा ने अपने अभिनय के जोहर दिखाए, क्यूंकि यह फिल्म उन पर ही केन्द्रित है, तो वह जता सकेंगी कि मुम्बैया फिल्म उद्योग ने उनके टैलेंट का उपयोग नही किया । हिंदी फिल्मों के दर्शकों को अफ़सोस होगा कि एक अच्छी अभिनेत्री ने अपने कैरिअर को शराब और प्रेमियों में यूँही असमय डुबो दिया। इसमें एक सेकंड का क्या दोष?
देखेंगे.
जवाब देंहटाएंumda jaankaari
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