
किरण राव यदि आमिर खान की पत्नी ना होती तो क्या वह फिल्म director बन पाती? यदि फिल्म के निर्माता आमिर खान न होते तो क्या धोबी घाट सिनेमा घरों में रिलीज़ हो पाती? इन दोनों सवालों का एक जवाब नहीं है। अपने अनुभवों को डायरी में लिखना एक अलग बात है। पन्ने पन्ने रोज लिखा जा सकता है। पर फिल्म बनाना बिलकुल दूसरी बात है। एक कुछ सौ पन्नों की स्क्रिप्ट लिखना। उस स्क्रिप्ट के अनुरूप एक्टर ढूँढना और उनसे अभिनय कराना जितनी एक बात है, उतनी बिलकुल अलग बात है एक इंटरेस्टिंग स्क्रीनप्ले लिखना। डायरी आँखों से पढी जाती है। पढ़ने वाला अपने हिसाब से विजुअलाइज करता है। हर अलग व्यक्ति में यह विजुअलाइजेसन अलग अलग हो सकता है। पर जब कोई फिल्म बनायी जाती है तो उसका अपना विजुअलाइजेशन होता है। यह विजुअलाइजशन फिल्म के स्क्रिप्ट राईटर का होता है। डिरेक्टर उसे बजरिया कैमरा सलुलोइड पर उतारता है। इस विजुअल से कितने सहमत हैं या कितने असहमत हैं, यह एक अलग चीज है। धोबी घाट की किरण राव डायरी लिखती लगती है। वह कोई द्रश्य नहीं लिखती। उनके लिखे का आँखों से या दिल दिमाग से कोई सरोकार नहीं होता। किसी भी फ्रेममें दर्शकों को प्रभावित करने की क्षमता नहीं है। कीर्ति मल्होत्रा को छोड़ दें तो कोई एक्टर प्रभावित भी नहीं करता। वास्तविकता तो यह है कि किरण ने कोई करेक्टर लिखने का प्रयास ही नहीं किया। लिखा और लिखते लिखते ऊब गए तो छोड़ दिया, ऐसा ही कुछ किरण की फिल्म में नज़र आता है। इसलिए यह कहने में कोई हिचक नहीं कि यदि किरण राव आमिर खान की पत्नी न होती तो शायद यह फिल्म बन ही नहीं पाती। यदि धोबी घाट के निर्माता आमिर खान न होते तो शायद यह फिल्म सिनेमाघरों में रिलीज ही नहीं हो पाती। दोनों ही दशा में दर्शकों का भला ज़रूर होता।
ager is film ke bare me likhne se pahle aap yeh bhi likhte ki app kis bina par film samiksha karte ahi to padne wala jarur samjhta ki appke vyaktigat pasand ke allawa bhi kuch hai ya nahi
जवाब देंहटाएंek nirashatamak vyakhya ek aashatmak film ki