रविवार, 16 जनवरी 2011

कॉमेडी फिल्म में नदारद कॉमेडी डायलाग


धर्मेन्द्र, सनी देओल और बाबी देओल की फिल्म यमला पगला दीवाना की पिछले एक साल से दर्शकों को बेताबी से प्रतीक्षा थी। पिता पुत्रों की यह फिल्म अपने के तीन साल बाद प्रदर्शित हो रही थी। अपने एक इमोशनल फिल्म थी। बिलकुल घर जैसा माहौल था दर्शकों को कुछ भी अटपटा नहीं लगा था। अपने के ठीक विरुद्ध यमला पगला दीवाना एक कॉमेडी फिल्म है । दर्शक फिल्म में देखना चाहते थे कि पिता के साथ कॉमेडी करते दोनों पुत्र कितने ईज में होते हैं। अख़बारों के जरिये सभी जान गए थे कि सनी और बाबी अपने पिता का बहुत लिहाज करते हैं, उनके सामने एक शब्द नहीं बोलते। अपने इंटरव्यू के जरिये पुत्र देओलों ने इसे बार बार दोहराया भी था। इसलिए दर्शक देखना चाहते थे कि दोनों देओल अपने पिता की मौजूदगी में किस प्रकार से हँसी मज़ाक के संवाद बोलते हैं। यमला पगला दीवाना के प्रचार में यह बार बार कहा गया कि बाबी ने फिल्म में पिता धर्मेन्द्र को अबे धरम तू बड़ी कमीनी चीज़ है कहा है। इसमें कोई शक नहीं कि इससे दर्शकों में फिल्म के प्रति उत्सुकता बढी। फिल्म को मिली ओपनिंग इसका प्रमाण भी है।

फिल्म कॉमेडी है। कॉमेडी के लिए टाइमिंग बड़ी चीज़ होती है, अभिनेताओं का कॉमिक सेन्स बेहतर होना चाहिए, कलाकारों के बीच की केमिस्ट्री महत्व रखती है। ख़ास चीज होती है हास्य की परिस्थितियां और संवाद। यमला पगला दीवाना में इन सब मसालों की कमी थी या यह चीजें नदारद थीं। धर्मेन्द्र के साथ बाबी के कॉमेडी सीन ज्यादा हैं। पर ऑन स्क्रीन दोनों के बीच ऑफ स्क्रीन का लिहाज़ साफ़ नज़र आता है। ऐसे सीन्स के लिए कलाकारों के बीच जो केमिस्ट्री होनी चाहिए वह बिलकुल नहीं थे। दोनों के चेहरों पर लिहाज़ का तनाव साफ़ नज़र आ रहा था। सनी देओल जहाँ एक्शन कर रहे थे उनके घूंसे ग़ज़ब ढहा रहे थे। अच्छी बात यह थी कि सनी के अपने पिता के साथ कॉमिक सीन नहीं के बराबर थे। बाबी देओल बहुत सीमित रेंज के अभिनेता है। रोमांस में वह ठीक ठाक लगते हैं। पर यमला पगला दीवाना में उनका रोमांटिक जोड़ा कुलराज रंधावा किसी कोण से रोमांटिक नहीं थी। उनमे ग्लेमर का अभाव है। उनका रूप ऐसा नहीं कि रोमांस करने को जी चाहे। धर्मेन्द्र में स्पार्क है। वह कहीं कहीं पुराना चावल लगते हैं। पर बेटों के साथ कॉमेडी उनको भारी लगी। वह उसके बोझ से दबे हुए थे। उपयुक्त होगा यदि धर्मेन्द्र अपने बेटों के साथ एक्शन करे, गंभीर फ़िल्में करें। पर कॉमेडी किसी अन्य अभिनेता या अभिनेताओं के साथ ही करें। नफीसा अली अपनी छोटी भूमिका में नफीस लगीं, अनुपम खेर तो अनुपम हैं।

यमला पगला दीवाना की सबसे बड़ी कमजोरी स्क्रिप्ट है। जो कुछ लिखा गया था, वह उत्सुकता पैदा करने वाला नहीं था। थ्रिल का अभाव था। कॉमेडी फिल्मो की स्क्रिप्ट में कॉमेडी सिचुएशन का होना बहुत ज़रूरी होता है। फिल्म में ऎसी परिस्थितियां या तो बन नहीं पाई थीं, या बहुत कम थीं। संवाद भी कुछ ख़ास नहीं थे। बाबी और सनी के संवादों को कुछ ज्यादा चुटीला बनाया जाना चाहिए था। तभी इन दोनों के सीन में दर्शक हँसते। यही कारण है कि इंटरवल के बाद जब अनुपम खेर परदे पर आते हैं, तब उनके बेटों के साथ हँसी का माहौल बन पाता है। फिल्म हंसाने हंसाने के काबिल बन पाती है। समीर और देओलों को यह समझना होगा कि एन आर आई बच्चों के मुहं से सन्डे हो या मंडे रोज खाओ अंडे जैसे संवाद अटपटे लगते हैं।

समीर कार्निक में कल्पनाशीलता का नितांत अभाव है। वह कोई सीन ऐसा नहीं बना सके जो मौलिकता लिए होता। ख़ास कर बनारस का माहौल बना पाने में समीर असफल रहे हैं। फिल्म देखते समय ऐसा लगता था जैसे मुंबई के बार में आ गए हों। धर्मेन्द्र और बाबी के ठगने के तरीकों में कल्पनाशीलता से काम लिया जाता तो फिल्म खासी रोचक बन जाती। फिल्म का पहला भाग फिल्म को बिल्ड करने वाला होता है। इसके लिए धर्मेन्द्र और बाबी के सीन्स को बढ़िया बनाया जाना चाहिए था। जबकि यही सीन्स बेहद कमज़ोर थे। दूसरे हाफ में भी यदि समीर पंजाबियों की एन आर आई प्रियता को निशाना बनाते तो तो शायद फिल्म ज्यादा रोचक बन पाती।

फिल्म का संगीत कुछ ख़ास नहीं। यहाँ तक कि फिल्म में शामिल हो कर प्रतिज्ञा फिल्म का यमला पगला दीवाना गीत भी अपना कॉमिक सेन्स खो बैठा था। कुल मिला कर यह कहा जा सकता है कि फिल्म उतना हंसाती नहीं, इसके लिए उतना हँसना पड़ता है।

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