गुरुवार, 27 जनवरी 2011

दिल तो बच्चा है जी


मधुर भंडारकर ने अपने फिल्म जीवन की शुरुआत एक्शन फिल्म त्रिशक्ति से की थी। उन्होंने आन- मेन एट वर्क जैसी सितारा बहुल एक्शन फिल्म बनायी। मगर उन्हें पेज ३, कार्पोरेट, ट्रैफिक सिग्नल, फैशन और जेल जैसी सोसाइटी की चड्ढी खोलने वाली फिल्मों से जाना जाता है। दिल तो बच्चा है जी में वह बिलकुल नए अवतार में हैं। वह अपनी अब तक की फिल्मों से बिलकुल अलग कॉमेडी फिल्म लेकर आये हैं। अजय देवगन जैसा मजा हुआ मज़बूत अभिनेता है तो कोई भी बढ़िया फिल्म बना सकता है। मगर मधुर ने इमरान हाशमी जैसे अभिनेता को पूरे नियंत्रण में रखा है। वह अपने पुराने रूप में हैं, पर लम्पट जैसे नहीं लगते। ओमी वैद्य अपनी हिंदी सुधार लें तो वह हिंदी फिल्मों में बहुत काम पा सकते हैं और कॉमेडी को नया एंगल दे सकते हैं। श्रधा दास में वैम्प बनने के गुण है। शाहजान पद्मसी को हिंदी फिल्मों में जगह बनानी है तो अपने हर डिपार्टमेंट में बदलाव लाना होगा। वह दिया मिर्ज़ा की रद्दी कॉपी लगती हैं। श्रुति हासन बेकार हैं। सबसे चौकाने वाला अभिनय तारे ज़मीन पर में दर्शील सफारी की माँ की भूमिका करने वाली रोशनी चोपडा का हैं। वह अजय देवगन के बाद पूरी फिल्म में अपनी प्रेजेंस जताती हैं। पता नहीं क्यूँ फिल्म वालों ने इस अभिनेत्री की प्रतिभा का सही उपयोग अभी तक क्यूँ नहीं किया। वैसे अभी भी देर नहीं हुई है।

मधुर भंडारकर हमारे देश के ऐसे फिल्मकारों में हैं जो किसी गंभीर या अगंभीर विषय पर बिना भटके दर्शकों को पसंद आने वाली फिल्म बना ले जाते हैं। संजय छेल की कलम इस फिल्म में क्या खूब चली है। उन्होंने मधुर भंडारकर के साथ नीरज उद्वानी और अनिल पाण्डेय की कथा पटकथा को मज़बूत सहारा दिया है। रवि वालिया का कैमरा जितना आँखों को लुभाने वाले द्रश्य दिखाता है, वहीँ भावुक प्रसंगों को उभारने में भी सहायक होता है। प्रीतम ने फिल्म की कहानी के अनुरूप संगीत दिया है। यह याद रहने वाला नहीं तो फिल्म में ऊब पैदा करने वाला भी नहीं।

बॉक्स ऑफिस पर यह फिल्म दर्शकों को खीच लाएगी, ऐसी उम्मीद की जा सकती है।

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