मुझे डूबना अच्छा लगता है
यादों के समंदर में ।
मैं उतरता जाता हूँ
गहरा और गहरा
समंदर के अन्दर
...और अन्दर
जहाँ मुझे मिलते हैं
एक से बढ़ कर एक
बेशकीमती मोती
किये गए भले बुरे कामों के
उनसे मिले सबक के।
वही तो बताते हैं कि
मैंने क्या गलत किया
अब उन्हें सुधार कर
क्या अच्छा कर सकता हूँ।
इस समुद्र मंथन के बाद
जब मैं बाहर आता हूँ
तब खुद को
पहले से ज्यादा
मालामाल महसूस करता हूँ।
इसीलिए मुझे
डूब जाना पसंद है
यादों के समंदर की गहरायी में ।
All matter in this blog (unless mentioned otherwise) is the sole intellectual property of Mr Rajendra Kandpal and is protected under the international and federal copyright laws. Any form of reproduction of this text (as a whole or in part) without the written consent of Mr Kandpal will amount to legal action under relevant copyright laws. For publication purposes, contact Mr Rajendra Kandpal at: rajendrakandpal@gmail.com with a subject line: Publication of blog
शुक्रवार, 26 नवंबर 2010
तो भिडिये
क्या आप समझौता करना चाहते हैं ?
तो फिर भिडिये।
यदि भिड़ेंगे नहीं,
तो सामने वाले की
ताक़त कैसे जानेंगे?
क्यों किया जाये समझौता,
कैसे समझेंगे ?
क्योंकि,
समझौता तो ताक़तवर से किया जाता है,
जिसे हराया नहीं जा सकता,
जिसे दबाया नहीं जा सकता।
कमजोर तो,
मारने के लिए है,
जीतने के लिए है।
तो फिर भिडिये।
यदि भिड़ेंगे नहीं,
तो सामने वाले की
ताक़त कैसे जानेंगे?
क्यों किया जाये समझौता,
कैसे समझेंगे ?
क्योंकि,
समझौता तो ताक़तवर से किया जाता है,
जिसे हराया नहीं जा सकता,
जिसे दबाया नहीं जा सकता।
कमजोर तो,
मारने के लिए है,
जीतने के लिए है।
गुरुवार, 25 नवंबर 2010
जब जुड़ना ही है तो.....ब्रेक के बाद क्यूँ?

चोपडाओं और जोहरों का फिल्म बनाने का अपना तरीका है। इसमें वह दर्शकों को आकर्षित कर पाने में सफल भी होते रहे हैं, इसलिए वह अपनी इस शैली पर खुद ही फ़िदा हैं। अब ये बात दीगर है कि इन फिल्मकारों की इस घिसी पिटी शैली से दर्शक ऊबने लगे हैं। यश चोपड़ा की प्यार इम्पोसिबिल तथा जोहर की वी आर फॅमिली और आइ हेट लव स्टोरीज की असफलता इसका प्रमाण है। कुनाल कोहली भी इसी स्कूल से हैं। इसी लिए उनकी नयी फिल्म ब्रेक के बाद में चोपडाओं और जोहरों की झलक नज़र आती है। अभय गुलाटी और आलिया खान बचपन से साथ पले बढे हैं। अभय आलिया से प्रेम करता है और शायद आलिया भी। पर ना जाने क्यूँ आलिया ब्रेक लेना चाहती है और अभय इसे मान भी लेता है। क्यूँ ? यह कुनाल जाने। आलिया ऑस्ट्रेलिया चली जाती है। अभय भी पीछे पीछे जाता है। आलिया को फिल्म की हिरोइन बनाने का अवसर मिलाता है। वह अभय को ठुकरा कर फिल्म स्वीकार लेती है। अभय भारत वापस होने के बजाय खानसामा बन जाता है। इतना अच्छा खाना बनता है कि होटल खोल लेता और देखते ही देखते होटल की चेन खुल जाती हैं। माँ बाप के कहने पर शादी करने के लिए तैयार हो जाता है। आलिया को मालूम पड़ता है तो वह भारत वापस होती है कि अभय ने अपनी शादी के बारे में पहले उसे क्यूँ नहीं बताया। फिल्म के अंत में पता चलता है कि अभय आलिया को पाने के लिए यह सब कर रहा था। इस फिल्म के दौरान और ख़त्म होने पर दर्शक सोचता रहता है कि फिल्म में कुछ भी क्यूँ हो रहा था। बिलकुल फ्लैट तरीके से फिल्म चलती है, घटनाएँ घटती हैं एक्टर अभिनय करते हैं। किसी भी फ्रेम में कुछ भी नया नहीं। अभिनय भी कहानी की तरह बासी है। इमरान बन्दर की तरह मुह बनाते हैं, अपने मामू का नाम डुबोते हैं। दीपिका पादुकोण इतनी अगली कभी नहीं लगी। फिल्म जब ख़त्म होती है, तब दर्शक खुद से पूछता है जब जुड़ना ही था, तो....ब्रेक के बाद क्यूँ?
रविवार, 14 नवंबर 2010
विश्व में सबका प्यारा हैरी पॉटर

हैरी पॉटर एंड द डेथली होलोज पार्ट वन हैरी पॉटर श्रंखला की सातवीं और इस श्रंखला के आखरी पड़ाव से पहले का एक पड़ाव है। एक ब्रितानी महिला द्वारा अपनी घरेलू ऊब को मिटाने के लिए रचा गया हैरी पॉटर विश्व भर के पाठकों को इतना पसंद आएगा, किसी ने कल्पना तक नहीं की थी। इस सीरीज का पहला उपन्यास हैरी पॉटर एंड द फिलोस्फ़र्स स्टोन ३० जून १९९७ को ब्रिटेन के बुक स्टोर में आया। अमेरिका में इसे हैरी पॉटर एंड द सोर्सर्स स्टोन शीर्षक से जारी किया गया। चार साल पांच महीने बाद इस उपन्यास पर हैरी पॉटर सीरिज की पहली फिल्म द सोर्सर्स स्टोन रिलीज़ हुई। १५२ मिनट लम्बी डैनियल रेडक्लिफ, रुपर्ट ग्रिंट और एमा वाटसन अभिनीत और क्रिस कोलंबस निर्देशित १२५ मिलियन डॉलर की इस फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर ९७४ मिलियन डॉलर से अधिक की कमायी की। क्रिस कोलंबस ने इस सीरीज की दूओसरी फिल्म द चैम्बर ऑफ़ सीक्रेट्स का भी निर्देशन किया। नवम्बर २००२ में प्रदर्शित १६१ मिनट लम्बी द चैम्बर ऑफ़ सीक्रेट्स के निर्माण में १०० मिलियन डॉलर खर्च हुए थे। फिल्म की कुल कमाई ८७८ मिलियन डॉलर थी। कोई दो साल बाद इस सेरिज का तीसरा भाग द प्रिजनर ऑफ़ अज़कबन रिलीज हुई। १३० मिलियन डॉलर की इस फिल्म की बॉक्स ऑफिस पर कुल कमाई ७९५ मिलियन डॉलर से अधिक थी। इस फिल्म का निर्देशन अलफोंसो क्युरान ने किया था। द गोब्लेट ऑफ़ फायर नवम्बर २००५ में रिलीज हुई। माइक न्यूमन की १५० मिलियन डॉलर वाली इस फिल्म ने कुल ८९५ मिलियन डॉलर की कमाई की थी। इस फिल्म को सीरिज की अन्य फिल्मों से अच्छा वीकेंड मिला था। पांचवी फिल्म आर्डर ऑफ़ द फिनिक्स का निर्देशन डेविड यातस ने किया था। २००७ में प्रदर्शित १५० मिलियन डॉलर की इस फिल्म ने ९३८ मिलियन डॉलर कमाए। सीरिज की छटी फिल्म द हाफ-ब्लड प्रिन्स १५ जुलाई २००९ को प्रदर्शित हुई थी। डेविड द्वारा निर्देशित २५० मिलियन डॉलर में बनी १५३ मिनट लम्बी इस फिल्म ने ९३३ मिलियन डॉलर कमाए। यदि इस सीरिज की फिल्मों की कमायी को मुद्रा स्फीति से समायोजित न किया जाये तो भी इस सीरिज की छः फिल्मों ने श्रंखला फिल्मों में सबसे अधिक ५.४ बिलियन डॉलर से अधिक कमा लिए हैं। इस सीरिज के सभी भाग आल टाइम हिट फिल्मों के चार्ट में शामिल हैं। जे के रोलिंग के सातवें उपन्यास पर द दैथली होलोज पर बनायी जा रही फिल्म को दो भागों में बाँट दिया गया है। सातवां भाग जहाँ १६ नवम्बर को रीलिज हो रहा है, वही अठावन और अंतिम भाग अगले साल जुलाई में रीलिज होगा। द डेथली होलो के निर्माण में २५० मिलियन डॉलर खर्च हो चुके हैं। इन दोनों भागों का निर्देशन डेविड यत्स ही कर रहे हैं। द डेथली होलो का पार्ट२ थ्री डि प्रभाव में भी रीलिज किया जायेगा। हैरी पॉटर सीरिज की फ़िल्में अपने आप में चमत्कार सरीखी हैं। यह ऎसी फ़िल्में हैं, जिन्हें बच्चों के साथ साथ बड़ों ने भी देखा। डेथली होलोज पार्ट वन तक इस सीरिज की सात फिल्मों की कुल लम्बाई १०४९ मिनट है। इन फिल्मों के निर्माण में कुल १२८० मिलियन डॉलर खर्च हुए। पर इतनी महंगी फिल्मों में से पहली छः फिल्मों ने इसके निर्माता डेविड हेमन को निराश नहीं किया। सीरिज की अब तक छः फिल्मों ने ५४१७ मिलियन डॉलर से अधिक कमा कर हेमन को वापस कर दिए हैं। इतनी कमायी जेम्स बोंड सीरिज की २२ फिल्मों और स्टार वार्स श्रंखला की छः फ़िल्में भी नहीं कर सकी हैं। लोकप्रियता के लिहाज से हैरी पॉटर ने जेम्स बोंड के अलावा स्टार वार्स, इंडियाना जोन्स, द टर्मिनेटर, जुरेसिक पार्क, द मैट्रिक्स, द लोर्ड ऑफ़ द रिंग्स, आदि श्रंखला फिल्मों को भी पीछे छोड़ दिया है।
शनिवार, 13 नवंबर 2010
मंगलवार, 9 नवंबर 2010
आदमी के सर वाला कुत्ता
एक बार मुझे
कुत्ता बनने का शौक़ चर्राया ।
मैं दोनों हाथ और दोनों पैरों के बल
खड़ा हो गया।
फिर मुंह उठा कर
लगा जोर जोर से भौंकने।
सामने से गुज़रते लोग
कुछ ज्यादा ही डर गए,
एक आम कुत्ते के भौंकने से उपजे डर से ज्यादा
डर था ऊनके चेहरों पर।
क्यूंकि,
यह कुत्ता
कुछ ज्यादा अजीब था,
आदमी से सर वाला
कुत्ते सी आवाज़ वाला !!
पता नहीं कितना खतरनाक हो !!!
हालाँकि भौंकने वाले कुत्ते काटते नहीं,
यह सुना था,
पर आदमी सी शक्ल वाला कुत्ता
कभी देखा नहीं था।
पता नहीं यह कवाहट उसके ऊपर बनी थी या नहीं।
इसलिए सभी का ज्यादा भयभीत होना स्वाभाविक था,
लोगों का भय देख कर
मुझे बहुत मज़ा आया।
उनका आतंक मुझे गदगद कर दिया
उसके बाद से आज तक
मैं -
आदमी सी शक्ल वाला कुत्ता बन
अपने चारों हाथ और पैरों पर खड़ा होकर
भौंकता चला आ रहा हूँ।
कुत्ता बनने का शौक़ चर्राया ।
मैं दोनों हाथ और दोनों पैरों के बल
खड़ा हो गया।
फिर मुंह उठा कर
लगा जोर जोर से भौंकने।
सामने से गुज़रते लोग
कुछ ज्यादा ही डर गए,
एक आम कुत्ते के भौंकने से उपजे डर से ज्यादा
डर था ऊनके चेहरों पर।
क्यूंकि,
यह कुत्ता
कुछ ज्यादा अजीब था,
आदमी से सर वाला
कुत्ते सी आवाज़ वाला !!
पता नहीं कितना खतरनाक हो !!!
हालाँकि भौंकने वाले कुत्ते काटते नहीं,
यह सुना था,
पर आदमी सी शक्ल वाला कुत्ता
कभी देखा नहीं था।
पता नहीं यह कवाहट उसके ऊपर बनी थी या नहीं।
इसलिए सभी का ज्यादा भयभीत होना स्वाभाविक था,
लोगों का भय देख कर
मुझे बहुत मज़ा आया।
उनका आतंक मुझे गदगद कर दिया
उसके बाद से आज तक
मैं -
आदमी सी शक्ल वाला कुत्ता बन
अपने चारों हाथ और पैरों पर खड़ा होकर
भौंकता चला आ रहा हूँ।
सदस्यता लें
संदेश (Atom)