रविवार, 27 जून 2010

कुछ यह भी

ढूँढने से जग में खुदा मिल जाता है यारो,

जो मिलता नहीं वह खुदा नहीं होता ।

आसमान में जितने तारे, तम्मनाये उतनी पालो,

छूने को आसमान हो तो तम्मनाओं की क्या बिसात?

जब पैदा हुआ मैं रो रहा था लोग हंस रहे थे,

आज मैं मर गया हूँ, तो लोग रो रहे हैं।

लोगों को समझना इतना आसान नहीं यारो,

मेरे लिए अजनबी हैं, उनके हरूफ।

रविवार, 20 जून 2010

फादर्स डे

हे पिता,
आज तुम्हारा दिन है
रोज तो हमारा दिन होता है,
तुम घर के एक कोने में दुबके रहते हो।
मैं और मेरी पत्नी के दोस्तों से,
उनकी गिटपिट इंग्लिश से भयभीत ।
हम लोगो के बच्चों से सकपकाते हो
उनकी माम डैड वाली अंग्रेजियत से,
उनकी उपेक्षित नज़रों से।
हे पिता,
तुम पुराने विचार
पुराने पहनावे वाले हो।
इसलिए हर दिन तुम्हारा नहीं हो सकता,
तुम्हे पार्टीज में नहीं बुलाया जा सकता।
फिर भी
क्यूंकि तुमने हमें पैदा किया है
इसलिए
उस एक दिन की याद में
हम मनाते हैं फादर्स डे
ताकि तुम्हारे जैसा कोई
कह न सके कि
आज की पीढ़ी कल को भूल गयी।




बुधवार, 16 जून 2010

दुःख का निवारण : पूजा पाठ

मेरी आज अपने एक सहयोगी से बात हो रही थी। वह इधर काफी समय से परेशान हैं। शारीरिक व्याधियां सता रही हैं। चोट चपेट लग रही है। कहने लगे की मृत्युंजय जाप कराना है। इसके लिए पैसा उधार लिया है। मैंने कहा तुम थोड़ी तनख्वाह पाते हो। कैसे करोगे यह सब। जो अपने बच्चों के लिए करना चाहते हो, वह जाप आदि में ही निकल जायेगा। बच्चों के साथ अन्याय नहीं कर रहे? बोले तो क्या करें। सब कुछ बुरा हो रहा है। मैंने कहा यह क्यूँ नहीं सोच रहे कि जो होनी है वह हो रही है। यह क्यूँ नहीं सोच रहे कि ज्यादा बुरा नहीं हुआ, कम बुरे से सब टल गया। थोड़ा रुक कर उनसे फिर पूछा तुम ईश्वर पर विश्वास करते हो। ईश्वर जो तुम्हारे लिए शुभ है, वही कर रहा है, इस पर विश्वास करते हो। उन्होंने कहा हाँ मैं विश्वास करता हूँ। तब मैंने कहा तो उसके लिखे विधान पर पूजा पाठ क्यूँ? तुम ईश्वर को मजबूर क्यूँ करना चाहते हो कि वह वैसा ही करे, जैसा तुम चाहते हो। क्या यह ईश्वर के कार्य में दखल नहीं? क्या तुम ईश्वर बनना चाहते हो? वह सहमत होने के बावजूद सहमत नहीं थे। बोले पर मेरे साथ जो कुछ हो रहा है, उसका निवारण तो होना ही चाहिए। इस पर मैंने पूछा, क्या तुम ऐसा समझते हो कि पूजा पाठ, तंत्र जाप से सब कुछ ठीक हो जाता है। यह तो बड़ा आसान हुआ। लेकिन, तब तो ऎसी दशा में किसी को दुखी होना ही नहीं चाहिए। हमारा देश हर धर्म के मंदिर, मस्जिद, गिरिजा और गुरुद्वारा वाला देश है। हर घर, हर गली-नुक्कड़ पर कोई न कोई धार्मिक स्थल मिल जायेगा। रास्ता घेरते ये धार्मिक स्थल लोगो को नमन करने पर मजबूर कर देते हैं। तब ऐसे देश में इतना प्राकृतिक प्रकोप क्यूँ? क्या सारे धर्मों के ईश्वर इसे रोक नहीं सकते? रोक सकते हैं, पर रोक नहीं रहे? इसका मतलब यह हुआ कि यह होनी है। तब उसे टालने के प्रयास में अनावश्यक धन और समय की बर्बादी क्यूँ? वह एक बार फिर सहमत हो कर भी असहमत थे। जल्द ही वह पूजा पाठ करवाएंगे। में देखना चाहता हूँ कि उनका दुःख कष्ट मिटा या नहीं।

बकवास

मुझे राम से काम नहीं, रावण से काम चल जायेगा।

सिक्का खोटा ही सही, अंधे बाज़ार में चल जायेगा।

दुनिया को लाख समझाओ, समझेगी नहीं,

भरे बाज़ार में रोता ही रह जायेगा।

जानते हो कि दुनिया चार दिन की है,

पर सामान सौ बरस का जोड़ते हो,

बिजली से श्मशान में जलोगे,

पर कोठी आलीशान जोड़ते हो।

अरे,किसी पराये को अपना बनाओ,

रिश्ते सब अपने ही तोड़ते हैं।

मंगलवार, 15 जून 2010

सिनेमा और मूछें


टिप्पणियां

मैंने तो चाँद सितारों की तमन्ना की थी
मुझे ऐसी बीवी मिली जिसके चाँद से चहरे पर चेचक के दाग थे।
मै तो चला जिधर मिले रास्ता
पीने के बाद मेरे साथ अक्सर ऐसा हो जाता है।
पहला पहला प्यार है, पहली पहली बार है
हर खूबसूरत लड़की से यही कहा जाता है।
यादे न जाए बीते दिनों की
महीने की पहली तरीख के बाद ऐसा ही होता है।

सोमवार, 14 जून 2010

आदमी

एक आदमी

ऊँचाई से गिरा

और मर गया ।

इससे पहले

वही आदमी

'खुद' से गिरा था

पर

बेशर्मी से

हँसता रहा था।

अरे भैया,

ऊँचाई का फर्क

आदमी ही जानता है।

शनिवार, 12 जून 2010

बिना भाव का रावण


यह महज़ इत्तेफाक हो सकता है कि अपने कैर्रिएर के दस साल पूरे होने के ठीक दस दिन पहले अभिषेक बच्चन की फिल्म रावण रिलीज़ होने जा रही है । अभिषेक बच्चन की पहली फिल्म रिफ्यूजी ३० जून २००० को रिलीज़ हुई थी। रावण उनकी ४२ वीं फिल्म है। पर दस साल में ४२ फ़िल्में अभिषेक बच्चन के बॉक्स ऑफिस पर बिकाऊ सितारा होने का प्रमाण नहीं। उनके खाते में डेल्ही ६, द्रोण, सरकार राज, झूम बराबर झूम, उमराव जान, कभी अलविदा ना कहना, नाच, रक्त, रन, मुंबई से आया मेरा दोस्त, मैं प्रेम की दीवानी हूँ, ॐ जय जगदीश, शरारत, बस इतना सा ख्वाब है, ढाई अक्षर प्रेम के, तेरा जादू चल गया, रेफूजी, आदि सुपर फलों फ़िल्में दर्ज हैं। इनमे ज्यादातर बड़े बजट की फ़िल्में थीं। इतनी फ्लॉप फ़िल्में देने के बाद क्या कोई अभिनेता दस साल तक अपनी गाड़ी खींच सकता है? हाँ, यदि उसका पिता भी अमिताभ बच्चन हो। सच कहा जाए तो अभिषेक अपने पिता का बोया हुआ ही काट रहे हैं। गुरु और युवा जैसी फिल्मों के अलावा अपनी अन्य तमाम फिल्मों में अभिषेक बच्चन अभिनय के लिहाज़ से नाकाम साबित हुए हैं। उन्हें डांस करना बिलकुकल नहीं आता। रोमांस के नाम पर जीरो हैं। रील लाइफ प्रेमिका के सामने भी टफ बने खड़े रहते हैं । ऐसा लगता है जैसे किसी पहलवान से पंजा लड़ने जा रहे हों । संवाद अदायगी में वह कमज़ोर हैं। उनका चेहरा भावहीन बना रहता है। मणिरत्नम जैसे डिरेक्टर उनसे अभिनय करा सकते हैं। पर उनसे अभिनय करा पाना हर किसी के दम का बूता नहीं। इसके बावजूद उनके पास फ़िल्में हैं, तो यही कहा जा सकता है कि उन्हें अपने पिता के सुपर स्टार से बने रसूख का फायदा मिल रहा है। अन्यथा दसियों फ्लॉप फिल्मों के हीरो को कौन अपनी फिल्म का हीरो बनाना चाहेगा ? आइये चलें रावण को देख लेते हैं।

गुरुवार, 10 जून 2010

एक सेकंड जो ज़िन्दगी बदल दे


पार्थो घोष की इस शुक्रवार रिलीज़ हो रही फिल्म एक सेकंड जो ज़िन्दगी बदल दे का केवल लेखा जोखा रखने के लिहाज़ से ही महत्व है। ये फिल्म उन पार्थो घोष की फिल्म है, जिन्होंने अग्निसाक्षी, १०० डेज युगपुरुष जैसी फ़िल्में दी हैं। यह फिल्म जैकी श्रोफ और मनीषा कोइराला की उस जोड़ी की फिल्म है जिसने अग्निसाक्षी, १९२०-अ लव स्टोरी, युगपुरुष, लज्जा और ग्रहण जैसी फ़िल्में साथ साथ की हैं। इसके अलावा एक सेकंड जो ज़िन्दगी बदल दे का अन्य कोई महत्त्व नहीं। अब मनीषा-जैकी जोड़ी में अग्निसाक्षी और युगपुरुष वाली बात नहीं । दर्शकों के दिलो दिमाग में मनीषा का मासूम, नेपाली सौन्दर्य कोई एहसास पैदा नहीं करता। जैकी अब दर्शकों के पसंदीदा जग्गू दादा नहीं रहे। पार्थो घोष के निर्देशन में भी अग्निसाक्षी और १०० डेज वाली बात नहीं रही। अब यह तीनों अलग अलग या एक साथ भी दर्शकों को आकर्षित नहीं कर पाते। अलबत्ता, यदि मनीषा ने अपने अभिनय के जोहर दिखाए, क्यूंकि यह फिल्म उन पर ही केन्द्रित है, तो वह जता सकेंगी कि मुम्बैया फिल्म उद्योग ने उनके टैलेंट का उपयोग नही किया । हिंदी फिल्मों के दर्शकों को अफ़सोस होगा कि एक अच्छी अभिनेत्री ने अपने कैरिअर को शराब और प्रेमियों में यूँही असमय डुबो दिया। इसमें एक सेकंड का क्या दोष?

बुधवार, 9 जून 2010

क्यूंकि

मेरे पास एक घर है, एक छत है,

फिर भी मैं दुखी हूँ,

क्यूंकि मेरे पड़ोसी की छत चूती नहीं।

मेरे पास दो जोड़ कपडे हैं,

फिर भी मैं दुखी हूँ,

कि मेरे पडोसी के कपडे मुझसे चमकदार कैसे।

मैं और मेरा परिवार दो वक़्त की रोटी खा लेता है,

फिर भी मैं दुखी हूँ,

कि सामने की झोपडी के ग़रीब

भूखे भी कैसे हंस लेते हैं।

मैं दुनिया का सबसे दुखी व्यक्ति हूँ

क्यूंकि,

मेरे आस पास के लोग खुश हैं।

रविवार, 6 जून 2010

दोस्त और दुश्मन

मुझे शिक़वा है उन दोस्तों से

जो पीछे से वार करते हैं,

उनसे अच्छे वह दुश्मन

जो सामने नज़र आते हैं।

जीना और मरना

मैं जिया कुछ इस तरह

कि मरने वाला शर्मसार था।

मैं मरा कुछ इस तरह

कि जीने वाला जार जार था।

जीने और मरने में

फर्क इतना है यारों,

कोई जीने के लिए जीता है,

तो कोई मर कर भी जीता है।

इत्मीनान

मैं दिन भर सोचता रहा-

क्या करुँ, क्या न करुँ।

यह करुँ, यह न करुँ।

इसी उधेड़बुन में

पूरा दिन बीत गया।

रात आयी

और मैं

चादर तान कर सो गया।

शनिवार, 5 जून 2010

शुक्रवार, 4 जून 2010

बूँद

मैं और मेरे दोस्त ने देखा
एक बूँद को,
आसमान से गिरते हुए।
बूँद ज़मीन पर गिरी
और धूल में मिल गयी
दोस्त बोला-
आह ! धूल में मिल गयी।
मैंने उसे रोका
और कहा-
ज़रा देखो
बेशक,
धूल मिटटी में मिल गयी है,
पर उसके मिटने का निशाँ बाकी है।
धूल नम हो गयी है,
बूँद की यही खासियत
धूल को जीवनदायी बना देगी
ज़रुरत एक बीज की है
बूँद को धूल में मिलाने वाली
कल एक पौंधे को जन्म देगी।

गुरुवार, 3 जून 2010

बस की पांच कवितायेँ.

बस

अँधेरे की कोई उम्र नहीं होती,

बस,

उजाले की एक किरण चाहिए।

(२)

मुझे हाथ बढाने में

कोई ऐतराज़ नहीं

बस, एक हाथ

आगे बढ़ना चाहिए ।

(३)

मेरा ज़ीने का अंदाज़ निराला है,

बस,

मैं थोडा बेफिक्र हूँ।

(४)

वह बड़ी देर तक

मेरे सामने खड़ा रहा

बस, मैं था कि

आसमान के खुदा को देखता रहा।

(५)

मैं बस में चढ़ा

वह बस में चढ़ी,

बस आगे बढ़ी,

उन्हें झटका लगा।

वह मुझ पर गिरी,

मैंने उनको संभाला।

बस आगे बढ़ी,

बात आगे बढीk,

इतना बढी कि

गली मोहल्ले तक बढ़ी,

मैंनेh कहा बस।

हम दोनों ने शादी की

हनीमून मनाया बस पर चढ़ कर।

अब सब कुछ बस है।

मैं जैसे ही कुछ बोलता हूँ,

वह कहती हैं-

बस ।

बुधवार, 2 जून 2010

ये तो सोचा न था.

ये कैसी विडम्बना है? २१ मई को निर्माता राकेश रोशन की अनुराग बासु निर्देशित और हृथिक रोशन और बारबरा मोरी अभिनीत फिल्म काइट्स रिलीज़ हुई थी। फिल्म से सभी को बेहद उम्मीदें थीं। मगर हुआ क्या? काइट्स हिंदुस्तान के तमाम सिनेमाघरों से अच्छा वीकेंड बिताने के बाद, बुरी तरह से असफल फिल्म घोषित कर दी गयी। लेकिन उस समय जब काइट्स हिंदुस्तान के बॉक्स ऑफिस पर औंधे मुंह गिरी थी, सुदूर अमेरिका में यह फिल्म टॉप टेन पर विराजमान होने वाली पहली हिंदी फिल्म बन गयी थी। ऐसे में यह उम्मीद लगाना स्वाभाविक था कि काइट्स का विदेशी संस्करण काइट्स-द रीमिक्स ज़बरदस्त सफलता हासिल करेगा। यह उम्मीद भी स्वाभाविक थी। क्यूंकि काइट्स के अंतर्राष्ट्रीय संस्करण के लिए संपादन का काम होलीवुड के मशहूर डिरेक्टर ब्रेट रैटनर कर रहे थे। ब्रेट ने दो घंटे से ज्यादा की लम्बाई वाली काइट्स को काट पीट कर नब्बे मिनट की कर दिया था। इतनी लम्बाई होलीवुड के दर्शकों को रास आती है। मगर हुआ कुछ और ही। अपने हिंदी संस्करण से पहले वीकेंड में एक मिलियन डालर की कमी करने वाली काइट्स का रीमिक्स संस्करण मात्र ३.३७ करोड़ ही कमा सका। दरअसल काइट्स के साथ सबकुछ खराब ही हुआ था। अनुराग बासु रोमांस और क्राइम का थ्रिलर मिश्रण कर लेते हैं। उनके लिए कहानी भी वैसी ही ली गयी थी। मगर काइट्स को इंटरनेशल फेस देने के चक्कर में मक्सिको की अभिनेत्री बराबर मोरी को लेना, स्पेनी भाषा में संवाद और बोल्ड रोमांस का तड़का दिया जाना मजबूरी हो गयी । नतीजे के तौर पर अनुराग के हाथ से सब कुछ निकलता चला गया । एक बात और। फिल्म में हृथिक रोशन एक चालू चीज़ है। वह पैसे के लिए फर्जी शादियाँ भी करता है। इसके लिए वह नापसंद करते हुए भी कंगना से शादी करने को तैयार हो जाता है। मगर पार्टी में बारबरा को देख कर उसे पुराना समय याद आता है, जब वह नकली शादी करने के दौरान बराबर से प्रेम करने लगता है। बारबरा मोरी में ऐसा हुस्न नहीं है कि कोई धन दौलत का मोह छोड़ कर उसे पाने के लिए अपनी जान दाँव पर लगा दे। राकेश रोशन अनुराग बासु तथा हृथिक-बारबरा की जोड़ी यह स्थापित कर पाने में असफल हुई थी कि उन दोनों के बीच कोई ऐसा रोमांस पैदा हो सकता है। शायद इसी लिए काइट्स का अंतर्राष्ट्रीय संस्करण अमेरिका, आस्ट्रेलिया, आदि देशों के दर्शकों को तमाम गरमा गर्म द्रश्यों के बावजूद आकर्षित नहीं कर सका था। लेकिन ये तो किसी ने भी नहीं सोचा था कि काइट्स की दो कुछ इतने फुसफुसे तरीके से कटेगी।