
रोहन सिप्पी की इस शुक्रवार रिलीज़ फिल्म दम मारो दम की कहानी में कोई नयापन नहीं। गोवा की पृष्ठभूमि पर नशीली दवाओं के सौदागरों की इस कहानी में दर्शकों को इसलिए दिलचस्पी नहीं हो सकती कि अब नशीली दवाओं का व्यापार पूरे देश में आम है। लेकिन फिल्म दिलचस्प बन जाती हैं अपनी पटकथा और प्रस्तुति के कारण। जयदीप साहनी ने पटकथा दिलचस्प लिखी है। सब कुछ जानते हुए भी दर्शक आगे जानना चाहता है। रोहन सिप्पी ने इस घिसी कहानी को बेहतर हेंडल किया है। लगता नहीं कि कोई हिंदी फिल्म या पुरानी कहानी देख रहे हैं। अमित रॉय का कैमरा पात्रों के पीछे खुद भी भागता है और दर्शकों को भी अपने साथ भगाता है। पर इस दौड़ में दर्शक हांफते नहीं, उसका मज़ा लेते हैं। जहाँ तक अभिनय की बात है, किसी के लिए वाह वाह नहीं निकलती। अभिषेक बच्चन, राणा डग्गुबाती, बिपाशा बासु, गोविन्द नामदेव, आदि अपने काम को ठीक ठाक कर डालते हैं। पर ऐसा नहीं कि वाह निकल जाये। आदित्य पंचोली दमदार हैं। पर प्रतीक को अभी अपनी जाने तू या जाने ना की इमेज से बाहर निकलना हैं। उनकी आवाज़ दम तोड़ती लगती है। विद्या बालन के करने के लिए कुछ नहीं था। दीपिका पादुकोण के आईटम के ज़रिये रोहन सिप्पी ने अपनी फिल्म को प्रचार के डे वन से एस्टेब्लिश कर लिया। पर दीपिका को इससे कुछ फायदा होता नज़र नहीं आता। प्रीतम का संगीत कुछ ख़ास नहीं। फिल्म के संवाद फिल्म का माहौल बनाने और चरित्रों को उभरने में मदद करते हैं। यह पहली बॉलीवुड फिल्म है जो डोल्बी ७.१ सराउंड साउंड में मिक्स की गयी है। इस फिल्म की ख़ास बात यह है कि गोवा की पृष्ठभूमि पर फिल्म होने के बावजूद फिल्म में स्किन शो नहीं है। संवाद में रवानगी है। हर प्रान्त के दर्शकों को समझ में आने वाली भाषा है।
एक बात जो इस फिल्म के विपरीत जा सकती है, वह यह है कि जो काम हीरो यानि अभिषेक बच्चन के हाथों होना चाहिए,वह साइड हीरो यानि राणा दग्गुबती करते हैं। हिंदी बेल्ट में दर्शक यह पसंद नहीं करेगा कि उनके हीरो पर किसी बाहर के हीरो का अपरहैण्ड हो। राणा का व्यक्तित्व आकर्षक है। यदि दर्शकों ने उन्हें स्वीकार कर लिया तो समझिये कि दम मारो दम आइ पी एल के दौरान भी दर्शक बटोर लेगी।